agnihotra

।। अथ अग्निहोत्रम् ।।

।। अथ संकल्पपाठः ।।

                ओं तत्सत् श्री ब्रह्मणो द्वितीयप्रहरार्द्धे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे एकोवृन्दःषण्णवतिः कोटयोष्टौ लक्षाणि त्रिपञ्चाशत् सहस्राणि अमुक-१ सँवत्सरे अमुक-२ अयने, अमुक-३ ऋतौ, अमुक-४ मासे, अमुक-५ पक्षे, अमुक-६ तिथौ, अमुक-७ वासरे, अमुक-८  नक्षत्रे, अमुक-९  काले आर्यावर्ते  अमुक-१० प्रान्तस्य अमुक-११ जनपदस्य अमुक-१२ स्थाने अयं देवयज्ञः क्रियते।।


१-             सप्तदशाधिकशत
२-            उत्तरायणे/दक्षिणायने
३-            वसन्त/ग्रीष्म/वर्षा/शरद/हेमन्त/शिशिर
४-            चैत्र/वैशाख/ज्येष्ठ/आषाढ़/श्रावण/भाद्रपद/आश्विन/ कार्तिक/ मार्गशीर्ष /पौष/माघ/फाल्गुन
५-           शुक्ल/कृष्ण
६-            प्रतिपदायाम् /द्वितीयायाम्/ तृतीयायाम्/ चतुर्थ्याम्/पञ्चम्याम्/षष्ठ्याम्/सप्तम्याम्/अष्टम्याम् /नवम्याम्/
दशम्याम् /एकादश्याम्/ द्वादश्याम्/त्रयोदश्याम्/ चतुर्दश्याम् /पौर्णमास्याम्/अमावस्यायाम्
७-     सोम/मंगल/बुध/बृहस्पति/ शुक्र/शनि/रवि
८-            अश्विनी/भरणी/कृत्तिका/रोहिणी/मृगशीर्ष/आर्द्रा/पुनर्वसू/ पुष्य/आश्लेषा/मघा/पूर्वाफाल्गुनी/उत्तराफाल्गुनी/हस्त/चित्र
/स्वाति/विशाखा/अनुराधा/ज्येष्ठा/मूल/पूर्वाषाढ़ा/उत्तराषाढ़ा/श्रवण/धनिष्ठा/शतभिषा/पूर्वाभाद्रपदा/उत्तरभाद्रपदा/रेवती
९-         प्रातः/मध्याह्न/सायं
१०-        प्रान्त का नाम यथा-हरियाणा/उत्तरप्रदेश/ राजस्थान आदि।
११-         जनपद का नाम यथा-करनाल/मेरठ/अलवर आदि।
१२-        अमुकस्थाने-स्वगृहे/आर्यसमाजे।

 

।। अथ आचमनमन्त्राः।।

ओम् अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।।१।। इससे पहला आचमन करें

ओम् अमृतापिधानमसि स्वाहा ।।२।। इससे दूसरा आचमन करें

ओं सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।।३।। इससे तीसरा आचमन करके अस्पर्श करें।

।। अथ अंगस्पर्शमन्त्राः ।।

ओम् वाङ्म आस्येऽस्तु ।। इस मन्त्र से मुख

ओं नसोर्मे प्राणोऽस्तु ।। इस मन्त्र से नासिका के दोनों छिद्र

ओम् अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु ।। इस मन्त्र से दोनों आँखें

ओं कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु ।। इस मन्त्र से दोनों कान

ओं बाह्वोर्मे बलमस्तु ।। इस मन्त्र से दोनों भुजाएँ

ओं ऊर्वोर्म ओजोऽस्तु ।। इस मन्त्र से दोनों जंघाएँ

ओम् अरिष्टानि मेऽङ्गानि तनूस्तन्वा मे सह सन्तु ।। इस मन्त्र से सम्पूर्ण शरीर पर जल के छीटें देवें।

।। अथ अग्न्यानयनमन्त्रः / दीपप्रज्वालनमन्त्रः ।।

                निम्न मन्त्र का उच्चारण कर ब्राह्मण, क्षत्रिय वा वैश्य के घर से अग्नि लावें अथवा घृत का दीपक जलावें।

                ओं भूर्भुवः स्वः ।

।। अथ अग्न्याधानमन्त्रः ।।

                अब आहृत अग्नि अथवा घृत के दीपक से कपूर आदि को प्रज्वलित कर निम्न मन्त्र का उच्चारण करके आदधे पद के उच्चारण के साथ कुण्ड में स्थापित करें –

ओं भूर्भुवः स्वर्द्यौरिव भूम्ना पृथिवीव वरिम्णा।

तस्यास्ते पृथिवि देवयजनि पृष्ठेग्निमन्नादमन्नाद्यायादधे ।।

पुनः कुण्ड में छोटे-छोटे काष्ठ एवं कपूर को रखें।

।। अथ अग्निसमिन्धनमन्त्रः ।।

निम्न मन्त्र को पढ़कर व्यजन (पंखे) आदि से अग्नि को प्रदीप्त करें।

ओम् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते संसृजेथामयं च।

अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत।।

(यजु॰ अ॰ १५। मं॰५४।।)

।। अथ समिदाधानमन्त्राः ।।

                घृत में डुबोकर आठ-आठ अंगुल की तीन समिधाएँ मन्त्र के उच्चारण के अन्त में स्वाहा पर प्रदीप्त अग्नि में रखें –

ओम् अयं त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा।। इदमग्नये जातवेदसे-इदं न मम ।। १।। इस मन्त्र से पहली

ओं समिधाग्निं दुवस्यतघृतैर्बोधयतातिथिम्। आस्मिन् हव्या जुहोतन।। सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे स्वाहा।। इदमग्नये जातवेदसे-इदं न मम ।। २-३ ।।

इन दोनों मंत्रों से दूसरी।

ओं तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्द्धयामसि बृहच्छोचा यविष्ठय स्वाहा।।

इदमग्नयेऽङ्गिरसे-इदं न मम ।। ३ ।।                (यजु॰ अ॰३। मं॰ १-३।)

इस मन्त्र से तीसरी समिधा की आहुति देवें।

।। अथ पञ्चघृताहुतिमन्त्रः ।।

                निम्न मन्त्र से पाँच घृताहुति देवें।

                ओम् अयन्त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा।। इदमग्नये जातवेदसे-इदं न मम ।।१।।                                     (आश्व॰ गृ॰ १।१०।१२।)

।। अथ जलप्रोक्षणमन्त्राः ।।

                निम्न मन्त्रों से अञ्जलि में जल लेकर छिड़कावें-

ओम् अदितेऽनुमन्यस्व ।।१।। (इस मन्त्र से पूर्व दिशा में दक्षिण से उत्तर)

ओम् अनुमतेऽनुमन्यस्व ।।२।। (इस से पश्चिम दिशा में दक्षिण से उत्तर)

ओं सरस्वत्यनुमन्यस्व ।।३।। (इससे उत्तर दिशा में पश्चिम से पूर्व)

ओं देव सवितः प्र सुव यज्ञं प्र सुव यज्ञपतिं भगाय।

दिव्यो गन्धर्वः केतपूः केतन्नः पुनातु वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु।।

(इससे प्रदक्षिणवत् वेदी के चारों ओर जल छिड़कावें।)

।। अथ आघारवाज्यभागाहुति मन्त्राः ।।

                घृत से चार आघारवाज्यभागाहुति देवें।

ओम् अग्नये स्वाहा।। इदमग्नये-इदं न मम ।।१।।

(इस से वेदी के उत्तर भाग की अग्नि में)

ओम् सोमाय स्वाहा।। इदं सोमाय -इदं न मम ।।२।।

(इससे दक्षिण भाग की अग्नि में)

ओम् प्रजापतये स्वाहा।। इदं प्रजापतये-इदं न मम ।।३।।         (इससे मध्य में)

ओम् इन्द्राय स्वाहा।। इदमिन्द्राय-इदं न मम ।।४।।             (इससे मध्य में)

।। अथ प्रातःकालाग्निहोत्रमन्त्राः ।।

नीचे लिखे हुए मन्त्रों से प्रातःकाल अग्निहोत्र करें –

ओं सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा।१।।

ओं सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा।।२।।

ओं ज्योतिः सूर्यः सूर्योज्योतिः स्वाहा।।३।।

ओं सजूर्देवेन सवित्र सजूरुषसेन्द्रवत्या।

जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा ।।४।।                          (यजु॰३। ९-१०।)

।। अथ सायंकालाग्निहोत्रमन्त्राः ।।

नीचे लिखे हुए मन्त्रों से सायंकाल आहुतियाँ देवें।

ओम् अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा।।१।।

ओम् अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा।।२।।

ओम् अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा।।३।।

इस मन्त्र को मन से उच्चारण करके तीसरी आहुति देवें।

ओं सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या।

जुषाणोऽअग्निर्वेतु स्वाहा।।४।।                       (यजु॰३। ९-१०।)

।। अथ उभयकालीनमन्त्राः ।।

अब निम्नलिखित मन्त्रों से प्रातः-सायं आहुति देनी चाहिए-

ओं भूरग्नये प्राणाय स्वाहा।। इदमग्नये प्राणाय-इदं न मम।।१।।

ओं भुवर्वायवेऽपानाय स्वाहा।। इदं वायवेऽपानाय-इदं न मम।।२।।

ओं स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा।। इदमादित्याय व्यानाय इदं न मम।।३।।

ओं भूर्भुवः स्वरग्निवाय्वादित्येभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः स्वाहा।।

इदमग्निवाय्वादित्येभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः-इदं न मम।।४।।

ओम् आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरों स्वाहा।।५।।

ओं यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते।

तया मामद्य मेधयाऽग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा।।६।।        (यजु॰ अ॰ ३२। मं॰ १४)

ओं विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव।

यद् भद्रन्तन्नऽ आ सुव स्वाहा ।।७।।                        (यजु॰ अ॰ ३०। मं॰ ३)

ओम् अग्ने नय सुपथा रायेऽ अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।

युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम स्वाहा।।८।।   (यजु॰ अ॰ ४०। मं॰१६)

।। अथ पूर्णाहुतिमन्त्राः ।।

निम्न मन्त्रों से स्रुवा को घृत से पूरा भरकर तीन आहुतियाँ देवें।

ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।। इससे एक

ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।। इससे दूसरी

ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।। इससे तीसरी आहुति देवें।

विशेष: यदि सायं एवं प्रातःकाल की आहुतियाँ एक ही समय देनी हों तो प्रातःकाल देवें, तब यह क्रम रखें – ४ आघारवाज्यभागाहुति घृत से, ४ प्रातःकाल की आहुतियाँ, ४ सायंकाल की आहुतियाँ, ८ सांय – प्रातः दोनों समय की आहुतियाँ, ३ पूर्णाहुति, यदि प्रातः और सायं पृथक्-पृथक् करना हो तो ४ प्रातःकाल की आहुति (प्रातः में) अथवा ४ सायंकाल की आहुति (सायं में) पश्चात् पूर्ववत् अन्य आहुतियाँ देवें।।

।। इति अग्निहोत्रम् ।।

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